भारत में 7 सितंबर 2025 को वर्ष का अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) हुआ, जिसे ‘ब्लड मून’ भी कहा गया। यह ग्रहण विशेष रूप से धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस लेख में हम इस ग्रहण के समय, सूतक काल, और इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताओं पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करेंगे।
ग्रहण का समय और दृश्यता:
यह पूर्ण चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को रात 8:58 बजे से प्रारंभ होकर 8 सितंबर को सुबह 1:26 बजे समाप्त हुआ। इस दौरान चंद्रमा पृथ्वी की छाया में पूरी तरह समा गया, जिससे चंद्रमा लाल-नारंगी रंग में दिखाई दिया, जिसे ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। भारत के अधिकांश हिस्सों में यह दृश्य देखा गया, विशेषकर दिल्ली, रांची, और अन्य प्रमुख शहरों में।
सूतक काल और धार्मिक मान्यताएँ:
हिंदू धर्म में ग्रहण के समय को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान सूतक काल की अवधारणा है, जो ग्रहण के पूर्व 9 घंटे से प्रारंभ होती है। इस बार सूतक काल 7 सितंबर को दोपहर 12:57 बजे से प्रारंभ हुआ और ग्रहण समाप्ति के साथ समाप्त हुआ। इस अवधि में विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं, बच्चों, और वृद्धों को घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है।
ग्रहण के दौरान क्या करें:
ग्रहण के समय मानसिक शांति बनाए रखें और सकारात्मक ऊर्जा के लिए ध्यान या मंत्र जाप करें।
ग्रहण के प्रारंभ और समाप्ति के समय स्नान करना शुभ माना जाता है।
ग्रहण के बाद घर के हर कोने में गंगाजल का छिड़काव करें और देवी-देवताओं को स्नान कराएं।
भोजन या अन्य खाने-पीने की चीजों पर भी गंगाजल छिड़कें।
मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करें और जरूरतमंदों को दान दें।
राशि अनुसार प्रभाव:
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, यह ग्रहण विभिन्न राशियों पर विभिन्न प्रभाव डालता है:
मेष, वृश्चिक, धनु, और मीन राशि वालों के लिए यह ग्रहण शुभ और लाभकारी रहने वाला है।
वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, मकर, और कुंभ राशि के जातकों के लिए यह ग्रहण परेशानियाँ ला सकता है, जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, पारिवारिक कलह, और आर्थिक हानि।
मिथुन और तुला राशि के लिए यह प्रभाव मिलाजुला रहेगा, संयम और सतर्कता से काम लेने की सलाह दी गई है।
निष्कर्ष:
7 सितंबर 2025 का पूर्ण चंद्र ग्रहण न केवल एक खगोलीय घटना था, बल्कि यह धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण था। इसने हमें ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभावों के बारे में सोचने का अवसर प्रदान किया। ग्रहण के समय की गई पूजा-अर्चना और धार्मिक क्रियाएँ हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होती हैं।
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